सम्राट विक्रमादित्य के टीले से गायब हुई एक पुतली, यहाँ मिली इंदुमती की मूर्ति

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सम्राट विक्रमादित्य के टीले से गायब हुई एक पुतली,  यहाँ मिली इंदुमती की मूर्ति

सम्राट विक्रमादित्य के टीले से गायब हुई एक पुतली, एक नवरत्न भी खंडित

मध्य प्रदेश के उज्जैन की पहचान जहां महाकालेश्वर मंदिर से होती है, वहीं इसे न्यायप्रिय सम्राट विक्रमादित्य की नगरी के रूप में भी जाना जाता है। यहां स्थित राजा विक्रमादित्य की विशाल प्रतिमा के परिसर में स्थापित 32 पुतलियों में से एक पुतली गायब होने की खबर सामने आई है। इसके अलावा, नौ रत्नों में से एक मूर्ति भी खंडित हो गई है, जिससे क्षेत्र में सनसनी फैल गई है।

विक्रमादित्य टीला: ऐतिहासिक धरोहर

उज्जैन को सम्राट विक्रमादित्य की नगरी कहा जाता है, जिनसे जुड़ी कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। 2015 में नगर निगम ने 4.90 करोड़ रुपये की लागत से न्याय के राजा सम्राट विक्रमादित्य के प्राचीन टीले का सौंदर्यीकरण करवाया था। इस प्रक्रिया के तहत विक्रमादित्य की विशाल प्रतिमा के नीचे 32 पुतलियों को स्थापित किया गया था। लेकिन अब यह सिंहासन 31 पुतलियों वाला रह गया है, क्योंकि इंदुमती नामक एक पुतली के गायब होने की खबर सामने आई है।

क्या है सच्चाई?

जब इस मामले की पड़ताल की गई, तो चौकाने वाली जानकारी सामने आई। जब स्थल का निरीक्षण किया गया, तो पाया गया कि इंदुमती की मूर्ति के स्थान पर केवल एक बांस का स्टैंड शेष है। इसके अलावा, वहां लगी पट्टिका से स्पष्ट होता है कि वहां एक मूर्ति मौजूद थी।

इस संबंध में जब चौकीदार और पुजारी से बातचीत की गई, तो उन्होंने मूर्ति चोरी होने की घटना से इनकार किया। चौकीदार के अनुसार, "तेज बारिश और हवा के कारण झाड़ का तना गिरने से इंदुमती की मूर्ति क्षतिग्रस्त हो गई थी और टूटकर नीचे गिर गई थी। मैंने उसे उठाकर दोबारा स्थापित किया, लेकिन हाल ही में वह फिर से गिरकर खंडित हो गई, जिससे उसे अब रिपेयर नहीं किया जा सकता। इस कारण इसे प्रशासन की जानकारी में लाकर कार्यालय में रख दिया गया है। जैसे ही नई मूर्ति तैयार होगी, उसे पुनः स्थापित कर दिया जाएगा।"

मुख्य पुजारी रघुनंदन पुजारी ने भी बताया कि "बारिश के दौरान तेज हवा के कारण मूर्ति क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके चलते इसे हटाकर सुरक्षित रख दिया गया। यहाँ 24 घंटे चौकीदार और सुरक्षा कर्मी तैनात रहते हैं, इसलिए चोरी की कोई संभावना नहीं है।" उन्होंने यह भी कहा कि मूर्ति चोरी होने की अफवाह कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा फैलाई गई है।

सम्राट विक्रमादित्य के 32 पुतलियां और नव रत्न

इतिहास के अनुसार, सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में नौ प्रसिद्ध रत्न थे, जिनमें कवि कालिदास, गणितज्ञ आर्यभट्ट, खगोलशास्त्री वराहमिहिर, अमरसिंह, वास्तुविद शंकु, आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि, बेताल भट्ट, वर रुचि और घटखर पर सम्मिलित थे। विक्रमादित्य के दरबार में इनकी मूर्तियां भी स्थापित हैं।

32 पुतलियों में शामिल प्रमुख नाम इस प्रकार हैं: रत्नमंजरी, चित्रलेखा, चन्द्रकला, कामकंदला, लीलावती, रविभामा, कौमुदी, पुष्पवती, मधुमालती, प्रभावती, त्रिलोचना, पद्मावती, कीर्तिमती, सुनयना, सुन्दरवती, सत्यवती, विद्यावती, तारावती, रुपरेखा, ज्ञानवती, चन्द्रज्योति, अनुरोधवती, धर्मवती, करुणावती, त्रिनेत्री, मृगनयनी, मलयवती, वैदेही, मानवती, जयलक्ष्मी, कौशल्या और रानी रूपवती।

देखरेख में लापरवाही

सिंहस्थ 2016 के बाद से इस ऐतिहासिक स्थल की देखरेख में लापरवाही बरती गई है। पिछले आठ वर्षों से इस स्थल का समुचित रखरखाव नहीं किया गया, जिससे यह धीरे-धीरे जीर्ण-शीर्ण होता जा रहा है। जबकि, रुद्रसागर में विक्रम टीले तक पहुंचने के लिए 65 मीटर लंबा आर्च ब्रिज भी बनाया गया है। प्रशासन को इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

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